Bilaspur High Court: उम्र कैद की सजा काट रहे युवक को हाई कोर्ट ने किया दोषमुक्त, जानिये बरी होने का क्या बना आधार…

Bilaspur High Court: उम्र कैद की सजा काट रहे युवक को हाई कोर्ट ने किया दोषमुक्त, जानिये बरी होने का क्या बना आधार…

बिलासपुर। दुष्कर्म के आरोप में बीते 10 साल से जेल में बंद युवक को हाई काेर्ट के डिवीजन बेंच से राहत मिली है। डिवीजन बेंच ने पीड़िता के उम्र के संबंध में स्कूल के दाखिला रजिस्टर के अनुसार दस्तावेज पेश करने और इसी आधार पर पुलिस में मामला दर्ज करने और कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने को अनुचित करार दिया है।

डिवीजन बेंच ने कहा कि जन्म प्रमाण पत्र की प्रमाणिकता के लिए स्कूल का दाखिला रजिस्टर ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए प्रमाणिक दस्तावेज का होना जरुरी है। पीड़िता की उम्र को लेकर अभियोजन पक्ष प्रमाणिक दस्तावेज पेश नहीं कर पाया। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि केवल स्कूल के दाखिला रजिस्टर की प्रविष्टि को प्रामाणिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता, जब तक उसके स्रोत की पुष्टि न हो। अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी, इसलिए पाक्सो एक्ट की धाराएं भी लागू नहीं होतीं।

कोर्ट ने माना कि पीड़िता ने खुद स्वीकार किया कि वह युवक के साथ पांच-छह महीने रायपुर में साथ रही और उस दौरान वह खुश थी। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपित ने बलपूर्वक या धोखे से उसका शारीरिक शोषण किया। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ पाक्सो कोर्ट के फैसले काे डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है।

दुष्कर्म के मामले की सुनवाई के बाद विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) ने आरोपी युवक मनप्रताप को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। विशेष न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देते हुए मनप्रताप ने क्रिमिनल अपील पेश की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच में हुई।

वर्ष 2015 में 16 वर्षीय लड़की के लापता होने पर परिजनों ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। करीब तीन महीने बाद वह रायपुर के एक गांव से बरामद हुई। पूछताछ में उसने बताया कि वह मनप्रताप के साथ प्रेम संबंध में थी और स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। लड़की और उसके पिता ने अदालत में इस बात को स्वीकार किया कि दोनों के बीच प्रेम संबंध थे और वह खुद अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई थी।

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि पीड़िता की उम्र के प्रमाण के तौर पर केवल स्कूल दाखिला रजिस्टर पेश किया गया है। जिसमें जन्मतिथि पिता के मौखिक बयान के आधार पर दर्ज की गई थी। उम्र के संबंध में जन्म प्रमाण पत्र, पंचायत रजिस्टर या अन्य प्रमाणिक दस्तावेज पेश नहीं किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि केवल स्कूल के दाखिला रजिस्टर की प्रविष्टि प्रामाणिक साक्ष्य नहीं मानी जा सकती, जब तक उसके स्रोत की पुष्टि न हो। अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी। लिहाजा आरोपी के खिलाफ पाक्सो एक्ट की धाराएं भी लागू नहीं होती।

कोर्ट ने माना कि पीड़िता ने खुद स्वीकार किया कि वह युवक के साथ पांच-छह महीने रायपुर में साथ रही और उस दौरान वह खुश थी। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ने बलपूर्वक या छलपूर्वक उसका शारीरिक शोषण किया। डिवीजन बेंच ने विशेष न्यायालय द्वारा 363, 366, 376(2)(आइ), पाक्सो की धारा 3/4 और एससी, एसटी एक्ट के तहत सुनाई गई सभी सजाओं को खारिज कर दिया है।

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